कृषि प्रधान देश में कृषि और कृषकों के प्रति हीनता का भाव अवश्य ही नई समस्याएं खड़ी करेगा, कम नहीं |
आजकल के आँकड़े बता रहे है की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बड़ी धीमी है | बेरोजगारी एक बड़ा ही विचारणीय मुद्दा है ,बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है |
आज मै या आप सभी एक बात अकसर दखते या सुनते होंगे ,जॉब है या नहीं है , या जॉब मिली या नहीं मिली , बेरोजगारी बढ़ने का अर्थ भी यही लगाया जाता है की सरकार जॉब का सृजन नहीं कर पाई | हम सभी का धयान भी सर्विस सेक्टर में जॉब पाने पर ही केंद्रित है जैसे
"क्लर्क ,डी-ग्रुप ,डिफेन्स,टीचिंग ,बैंकिंग,या प्राइवेट इंडस्ट्री "
हरियाणा में तो यही सुनने को है ,क्या हम सभी सर्विस देना चाहते है, क्या आप ने कभी इस बात पर विचार किया है, हम में से कोई भी उत्पादन के क्षेत्र में क्यों नहीं जाना चाहता आखिर क्या कारण है इसके पीछे ,अगर कोई मजबूरी वश उत्पादन के क्षेत्र में है तो भले ही लेकिन कोई अपनी इच्छा से या मन में ठान कर उत्पादन के क्षेत्र में नहीं उतरना चाहता | जैसे आज के शिक्षित युवा जॉब पाने के लिए मन में ठान ते है वैसे उत्पादन के क्षेत्र में उतरने के लिए क्यों नहीं ठानते ?
मै आप के सामने कुछ तथ्य पेश करुगा, जो हो सकता है आपको इस बारे में थोड़ा सोचने को मजबूर कर दे , इससे पहले अगर मै आप सभी से कुछ पुछु तो की क्या हम सर्विस में कुछ नया सृजन करते है? ..... मेरे ख्याल से नहीं | जैसे क्लर्क डाटा को आगे फोर्वर्ड कर देगा , पुलिस जो की आपको सेवा ,सुरक्षा और सहयोग का वादा करती है ,मेरे ख्याल से कुछ नया तो सृजन नहीं कर रहे ,अगर इन सब का अध्ययन किया जाये तो ये कुछ नया समाज को नहीं देते है | इनके समकक्ष अगर हम किसानो या पशुपालको को ले तो किसान एक बीज से दस नए बीजो के सृजन का काम करता है और पशुपालक दूध, भेड़ो से ऊन का उत्पादन पशुओं की देख-रेख करके करता है, देखा जाये तो हमारे लिए जयादा उपयोगी किसान और पशुपालक यानि, उत्पादन के क्षेत्र में लगे लोग है, फिर भी उत्पादन के क्षेत्र में जाने से लोग क्यों कतरा रहे है , अब में एक-एक करके तथ्य बताता हूँ |
पहला तथ्य :
सुरक्षा का आभाव :- सर्विस में आपको प्रकृति या प्राकृतिक आपदाओं से कोई चिंता नहीं है ,क्योकि अगर आप क्लर्क है तो आप का काम डाटा फॉरवर्ड करना है , अगर आप बैंकिंग सेक्टर में है तो आप का काम लेन देन से है, अगर आप पुलिस महकमे में है तो आप का काम कानून की रक्षा करना है और अन्य भी कोई काम हो सकता है , और इन सब के बाद आपको अपनी तनख्वा मिल जाएगी | इसके स्थान पर उत्पादन के क्षेत्र में लगे लोगों (किसान और पशुपालक )को बारिश पर विश्वास करना पड़ता है ,अगर समय पर अच्छी बारिश तो उत्पादन ठीक नहीं तो नहीं होगा , मतलब सुरक्षा का आभाव, और मेरे ख्याल से शायद सर्विस वाले लोग प्रकृति से इतने जुड़े हुए नहीं है तो प्रकृति का इतना ख्याल भी नहीं रखते ,और किसान और पशुपालक तो हर मोड पर प्रकृति के साथ तालमेल बैठाते नजर आते है शायद तभी ये प्रकृति का जयादा ख्याल रखते है ,
शायद यही कारण है की सुरक्षा के आभाव के कारण लोग उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश करने से कतराते है |
दूसरा तथ्य :
उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े लोगों के प्रति हीन भावना की दृष्टि :- हम कितनी ही समानता लाने की कोशिश करें या समानता दिखाने की कोशिश करें | हम एक का सुधार करे तो दूसरी नई चीज़ हावी हो जाती है जैसे आजादी के बाद जातिगत भेद भाव को कुछ हद तक कम किया तो आज ये जॉब होल्डर और उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े लोगो के बीच असमानताएं आने लगी है, ये आम बात है जैसे एक बस में सभी सूट बूट वाले लोग है और दो तीन किसान गंदे धोती कुर्ते या पायजामे में है तो जॉब होल्डर बड़े ही हीन भावना से ऐसे दखते है जैसे ये दूसरे ग्रह से आये हुवे लोग है, अगर यही लोग मेट्रो सिटी में हो तो उन जॉब होल्डर लोगो को बड़ा अजीब महसूस होता है की भाई ये कौन लोग है और कहाँ से आये है, तो आखिर ये तथाकथित शिक्षित में ये हीनता या असमानता वाले विचार कहा से आ गये है क्योकि आजादी के बाद तो तमाम सरकारों के प्रयास तो असमानता और हीन भावना को समापत करने के होते रहे हैं और ये भाव वो भी जॉब होल्डर यानि इन शिक्षित लोगों में ये अत्यंत ही शर्मनाक है |
तीसरा तथ्य :
सर्विस सेक्टर का उत्पादन वर्ग पर हावी होना :- देखिये वैसे तो सर्विस सेक्टर और उत्पादन वर्ग एक दूसरे के पूरक है लेकिन इन में सर्विस सेक्टर में कार्यरत लोग उत्पादन के क्षेत्र में लगे लोगों के ऊपर कहीं न कहीं हावी लग रहे है | जैसे पैसे किसान के पास है और वो अपने पैसो को बैंक में जमा करवाना चाहता है , उसके लिए लाइन में लगा है ऊपर से सर्विस सेक्टर के बाबू उनका लंच टाइम हो गया है , अभी ये कागज आपका पूरा नहीं है कह कर परेशान और करते है , और तो और क्लर्क, चपरासी तक उनकी मदद नहीं करते |
पुलिस अफसर भी उत्पादन के क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को सुलझाने में आना कानी करत्ते है इनका भी दोहरा व्यवहार है | अगर देखा जाये तो लोगों को अपना काम करवाने के लिए बहुत चक्कर लगाने पड़ते हैं वहीं बिज़नेस मैन पैसो के दम पर और सर्विस सेक्टर के लोग अपने पद की पहचान से वही काम बड़ी आसानी से करवा लेते हैं, इसलिए उत्पादन के क्षेत्र में लगे लोग अपने आप को बड़ा बदनसीब समझते हैं और सोचते हैं, की हम भी जॉब में होते तो इतनी परेशानियों का सामना नहीं पड़ता इससे ये साफ़ होता है की सर्विस सेक्टर के लोग उत्पादन से जुड़े लोगों पर हावी हैं | हालाँकि सर्विस सेक्टर के लोगों को सोचना चाहिए की देश को असली मायनो में कुछ देने वालों को तो थोड़ा सा भी कष्ट नहीं देना चाहिए ,और आखिरकार वो जो खाते हैं ,पीते हैं ,ओढ़ते है वो सब उन्ही की देन है तो उन्हें बिल्कुल भी कष्ट न दें |
चौथा तथ्य :
उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े लोगों के खुद के मन में हीन भावना और अपने काम को लेकर हीनता :- मेरे ख्याल से ये सब से बड़ा कारण बनता जा रहा है जिससे उत्पादन के क्षेत्र में जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है, जैसे कोई किसान है तो फसल को पानी देना आम बात है वो समय सर्दी की रात और गर्मी की तप्ती धूप भी हो सकती है, जब आप को अपनी फसल को पानी देना पड़े उस समय आने वाला एक आम ख्याल , अगर हम जॉब में होते तो क्यों रात में उठना पड़ता क्यों सर्दी में जाना पड़ता | मै उन को बतलाना चाहूँगा की जो लोग २४ घंटे लगातार चलने वाली इंडस्ट्री में काम करते है वो भी नाईट शिफ्ट लगाते हैं , उन को भी 8 -10 घंटे रात को काम करना पड़ता है, तो अपने काम को कभी छोटा न समझें क्योंकि कर्म ही धर्म है कर्म करे बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते | अगर मै सच बताऊ तो इंडस्ट्री में जॉब करने वाले भी अपने फिक्स टाइम 8 घंटे काम से ऊब चुके हैं, और सच में फिक्स टाइम 8 घंटे काम की व्यवस्था है भी ऊबाऊ |
पाँचवा तथ्य :
पावर का आना :- एक अन्य फैक्टर पावर भी है सर्विस सेक्टर में जाने का मकसद कहीं न कहीं पावर अपने हाथ में आना भी है और ये लोग अपनी पावर का उपयोग आम लोगों को दिखाने और दबाने के लिए करते है , जिससे भी लोग सर्विस सेक्टर में जाने लिए ज्यादा उत्सुक हैं बजाये की उत्पादन के क्षेत्र में उतरने के लिए |
इन तमाम तथ्यों से ये साफ़ होता है की आजकल लोग जॉब क्यों तलाश रहे हैं | उत्पादन के क्षेत्र में क्यों नहीं जाना चाह रहे , मै आपको इससे भी अवगत करा दूँ की सर्विस सेक्टर में जिस हिसाब से पिछले कुछ वर्षो में भीड़ बढ़ी है वो देश के लिए नुकसानदायक ही है, वो लोग भी कतई सोची समझी सोच और विचारधारा के लोग नहीं है | हाल ही का एक वाक्या बताता हूँ जिससे ये साफ़ होता है, पिछले कुछ दिनों वकिलों और पुलिस में टकराव ,एक वीडियो सामने आया जिसमें एक वक़ील एक पुलिस अफसर को सरेआम थप्पड़ मारते नजर आ रहा है, उन्हें अपने पद की भी गरिमा नहीं है एक लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाला और दूसरा लोगों की सुरक्षा करने वाला, इन दोनों के बीच टकराव ये साफ़ करता है की ये लोग भी कतई विचार करने वाले नहीं हैं, इन लोगों का इस तरह की सर्विस से जुड़ने का कोई मतलब नहीं है, ये सब भीड़ का एक और झुकाव होने का ही उदाहरण है, कि आज पुलिस वालो का केस कोर्ट में लड़ने के लिए कोई वक़ील नहीं है और वकिलों की FIR दर्ज़ करने के लिए कोई पुलिस वाला नहीं है |
आज देश में कैंसर जैसी बीमारिया बढ़ रही हैं क्योकि उत्पादन के क्षेत्र में उतरे लोग इस क्षेत्र में बेबश होकर उतरे हैं न की अपनी इच्छा से इस क्षेत्र में उतरे है | अगर इस क्षेत्र में लोग अपनी इच्छा से नहीं उतरे तो देश के सामने एक गंभीर समस्या बहुत जल्द उत्पन्न होगी |
और किसानो/पशुपालको को अपने काम पर गर्व होना चाहिए की वे उत्पादन के क्षेत्र में है और कुछ न कुछ नया सृजन कर रहे है, उनमें हीन भाव कतई नहीं होना चाहिए की वे एक जॉब होल्डर नहीं हैं |
अगर शिक्षित लोग अपनी मर्जी से उत्पादन के क्षेत्र में नहीं उतरेंगे तो थोड़े ही समय बाद देश में सभी लोग सर्विस देने वाले होंगे और उत्पादन के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का अकाल पड़ जाएगा ,वैसे भी उत्पादन के क्षेत्र में कामगारों की आवश्यकता ज्यादा है बजाये की उद्योगों के, ये एक गंभीर और विचारणीय समस्या है अगर इस पर सुधार नहीं हुआ तो हम कृषि प्रधान देश में ही कृषको की कमी हो जायेगी और बेरोजगारी की समस्या अपनी सारी हदें पार कर देंगी |
गौरव शर्मा
CODST LUVAS
Hisar
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