क्या यह वही भारतवर्ष है ?,
या केवल भूमि का टुकड़ा वही है ?
यहां की आबोहवा में कुछ जहर सा फैल गया, जहां दम भी घुट रहा है लेकिन सांस भी यहीं लेना है|
यहां कुछ तथ्यों को पेश करने की जरूरत है नहीं , सब कुछ आपके सामने हो रहा है, लेकिन फिर भी हम हैं कि आंखें बंद कर एक तरफ से मुंह फेर दूसरी तरफ और फिर दूसरी तरफ से तीसरी तरफ बस सिर झुकाए चलते जा रहे हैं,
क्या ये सब घटनाएं आपको अंदर तक चीरती हुई नहीं जाती या सब कपड़ों से ढके हुए रोबोट घूम रहे हैं, कोई एक घटना हो तो बताऊं भी, लेकिन यहां तो रोज ना जाने कितनों को जीते जी मार दिया जाता है,
वह घटना चाहे निर्भया की हो, हैदराबाद की, उन्नाव की या फिर हाथरस की सब में एक से बढ़कर एक मानवता को शर्मसार और तार-तार कर दिया |
ये तो महज वे घटनाएं हैं, जिनकी चीखें अखबारों या अन्य किसी भी माध्यम से हर किसी के कानों तक पहुंच पाई है, ऐसी हजारों चीखों को तो कोई सुन भी नहीं पाया, खैर सुनाने का फायदा भी क्या होता हमने कौन सा सारे जहां को सुधारने का ठेका ले रखा है, लेकिन मैं आपको अवगत करा दूं कि वर्ष 2018 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 33356 दुष्कर्म केस दर्ज किए, जैसा कि उन्होंने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2018 में बताया, औसतन 91 घटनाएं हर दिन ये भी महज वे घटनाएं हैं जो दुष्कर्म के मामलों में दर्ज की गई है | ऐसे हजारों हजार दुष्कर्म की वे वारदातें भी हैं जो दर्ज नहीं की गई है , लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे घटनाएं हुई ही नहीं है ये तो एक दुष्कर्म की घटना है |
कार्य क्षेत्र में महिलाओं के साथ गलत व्यवहार, तेज़ाब डालना, मारपीट की घटनाएं, ये भी अपराध की श्रेणी में आते हैं | क्या ये सब आपको अंदर से झकझोर नहीं देते हैं | एक से बढ़कर एक कृत्य हैं इनमें, जो किसी की भी जीने की सारी इच्छाएं समाप्त करने के लिए काफी हैं, ऐसी कोई भी घटना होने के बाद या तो वे स्वत: ही दम तोड़ देती हैं, या फिर जीती भी हैं तो एक नीरस जीवन| आखिर कैसे कोई दिल पर बोझ लिए आनंदमय जीवन जी सकता है| ईश्वर ना करे कि किसी के साथ भी कोई घटना घटित हो, लेकिन आप एक बार अपने अंतर्मन से पूछ कर देखिए कि कुछ घटित होने के बाद जीवन जीना कितना कठिन होता है | लेकिन इन सब के बाद हम दो-चार दिन के लिए अशांत होते हैं और फिर वही शुरू, ऐसा भी कतई नहीं है कि हमारा खून अग्नि की भांति जल ना उठता हो, क्योंकि जब हैदराबाद की घटना के बाद दोषियों को महज दो-चार दिन में सजा दे दी गई थी तब हम सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे | हालांकि सजा का तरीका गलत था, लेकिन फिर भी मन में खुशी थी कि चलो दोषी थे तो सजा भी मिल गई | लेकिन अभी दो-चार दिन पहले हाथरस की घटना ने तो जैसे यह बताया हो कि मानवता हो ही ना धरती पर सचमुच पहले तो कुछ दरिंदों ने एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया, वह कुछ बता नहीं पाए इसलिए उसकी जीभ काट दी गई, वह चल ना पाए उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई, और तो और मरने के बाद प्रशासन ने लड़की का शव मां बाप को नहीं दिखाया और रात के अंधेरे में दाह संस्कार कर दिया गया| क्या यह वही भारतवर्ष है, जहां सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करना निषेध बताया गया है, मैं यह भी बता दूं कि वहां रात को दाह संस्कार में आईएएस और आईपीएस रैंक के अधिकारी भी मौजूद थे, खैर जब मानवता ही दम तोड़ चुकी, तो धर्म कौन सा अधिकारियों के आगे पैर लगाने वाला था |
क्या मैं आपसे पुछू कि अधिकारियों की इतनी हिम्मत हो सकती है कि वे ऐसा कर सकें, जी नहीं , नीचे से लेकर ऊपर तक सब को सब पता होता है, लेकिन जिन्होंने भी पीड़िता के मां-बाप को खून के आंसू रुलाने की जहमत उठाई है, कसम से भगवान भी उन्हें कभी माफ नहीं करेगा | आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा आखिर कब ऐसा दिन आएगा जब एक भी घटना दुष्कर्म, कार्यक्षेत्र पर महिलाओं के साथ गलत व्यवहार, तेज़ाब डालना, मारपीट की नहीं होगी |
चलो कुछ
इतिहास
की
बात
करते
हैं
शायद महाभारत की कथा तो
आपने सुनी होगी, अगर
नहीं भी सुनी तो
कोई बात नहीं उसमें भी कुछ घटित
हुआ था |
पहली घटना तो यह कि जब कौरवों और पांडवों के बीच द्रुत कीड़ा चल रही थी, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रोपदी को एक वस्तु की भांति दांव पर लगा दिया, भले ही वे धर्मराज थे, लेकिन एक नारी को वस्तु की भांति दांव पर लगाना मेरे अनुसार तो एक शर्मसार करने वाली ही घटना है |
दूसरी घटना जो दुर्योधन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की सोची और अपने अनुज दुशासन को द्रोपदी के चीर हरण का आदेश दिया |
तीसरी और सबसे दुखदाई घटना यह कि उस सभा में भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य जैसे विद्वान लोग उपस्थित थे, लेकिन किसी में भी साहस नहीं हुआ कि वह ये सब रुकवा सकें, वे महज मूकदर्शक बने रहे |
हम सब भी तीसरी घटना में उपस्थित लोगों की तरह हैं जो मूकदर्शक बने हुए हैं, हम सब में हम सब सम्मिलित हैं, चाहे वे समय के अनुरूप नए कानून ना बना सकने वाले संसद में उपस्थित लोग हो या फिर न्यायिक प्रक्रिया में शामिल प्रशासन, वकील और जज हो, यही नहीं समाज को दिशा देने वाले गुरु हो या फिर समाज में रहने वाले हम सब हो | जिम्मेदार हर कोई है, मैं आपको यह भी बता दूं कि जिस प्रकार महाभारत में उपस्थित लोग भी जिम्मेदार थे, उसी प्रकार आज के मूकदर्शक भी इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराए जाएंगे | खैर जिम्मेदार ठहराने मात्र से तो पीड़िताओं का दुख दर्द कम नहीं होगा |
क्या मैं आपसे पुछू कि ये जो हम बोलते हैं कि 21वीं सदी भारत की होगी क्या यही सब होना है, जो देश मानवता की बात करता था क्या वहीं मानवता दम तोड़ देगी |
मैं कुछ कारणों का जिक्र आपके समक्ष अवश्य करना चाहूंगा, जो हो सकता है कुछ हद तक घटनाओं का कारण रहा हो | ये जो दुष्कर्म जैसी घटनाएं हैं ये ऐसा नहीं है कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधी इन सब के लिए किसी प्रकार की योजना बनाते हैं और फिर ऐसी वारदात को अंजाम देते हैं, बल्कि यह उनके दिमाग में बुरे विचारों का प्रभाव एकदम से बढ़ने और फिर आवेश में वे ऐसे अपराध कर बैठते हैं, फिर बाद में सबूत मिटाने के लिए प्रयासरत रहते हैं |
पहला कारण भारत में पोर्नोग्राफी का चलन काफी बढ़ रहा है, मेरे ख्याल से यह आपके दिमाग में कुछ समय के लिए बुरे विचारों का प्रभाव बढ़ाने के लिए काफी है और भारत के युवाओं के पास यह सब बड़ी आसानी से उपलब्ध भी है बड़ी स्क्रीन का फोन है, जिससे युवाओं का अपने आप पर नियंत्रण मुश्किल होता जा रहा है, मेरे ख्याल से यह सब एक कारण हो सकता है |
दूसरा कारण मैं जितना सोचता विचार करता हूं, और कुछ अनुभव करने का प्रयास किया है कि कहीं ना कहीं मां बाप की भी अपने बच्चों तक पर्याप्त पहुंच नहीं है, मां बाप अपने बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में , और कुछ हद तक सेक्सुअल एजुकेशन के बारे में अवश्य अवगत कराएं, क्योंकि कई बार बाल्यावस्था में ही बच्चों के साथ कुछ ऐसा हो जाता है जो उन्हें जीवन पर्यंत परेशान करता है, अगर ऐसा ना भी हो तो वे कम से कम आप से सीधा संवाद स्थापित कर पाए, बजाय की किसी तीसरे से अपनी समस्या का हल ढूंढे | मेरे ख्याल से बच्चों और माता पिता के बीच एक व्यापक समझ जरूरी है, यह मां-बाप की बच्चों तक पर्याप्त पहुंच ना होना, मेरे ख्याल से एक कारण हो सकता है उनकी युवावस्था में दुर्व्यवहार का |
तीसरा कारण कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लड़कियों का पहनावा एक कारण हो सकता है, हां हम मान सकते हैं कि यह क्षणिक आकर्षण का केंद्र हो सकता है, लेकिन जब दुष्कर्म जैसी घटनाएं 6 महीने, 2 साल, 3 साल की उम्र की छोटी- छोटी बच्चियों के साथ सामने आती है, तो फिर यह कारण खारिज हो जाता है |
चौथा कारण एक वाक्य और बताता हूं आपको, मैं हरियाणा में रहता हूं जहां गांव में अपने आसपास के गांवों में अपने लड़कों और लड़कियों की शादियां नहीं करते हैं, जिन्हें वे गुवांड कहते हैं उनका मानना है कि इन गांवों के साथ हमारा भाईचारे का रिश्ता है, तो हम यहां शादी कैसे कर सकते हैं | लेकिन आज अपना आस-पड़ोस तो छोड़ो भाई बहन के रिश्ते भी शर्मसार हैं, हो सकता है यह एक कारण हो इसलिए जरूरी है, कि रिश्तो की अहमियत समझे और समझाएं और रिश्तो की अहमियत बनाए रखें |
ये कुछ कारण हो सकते हैं आप तनिक विचार करें और हो सके जितने संभव प्रयास करें इन घटनाओं की चीखें अब ना ही गूंजे तो अच्छा है | इन चीखों के बजाय अब बच्चियों की किलकारियां गूंजे तो अच्छा है | ऐसा भी नहीं है कि बेटियों की किलकारीयों के लिए प्रयास नहीं किए गए हैं , वर्ष 2015 में एक बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू किया गया था जो एक सराहनीय कदम है, लेकिन जब तक बेटियों की चीखें सुनाई देंगी और मां-बाप को खून के आंसू रुलाया जाएगा तब तक ऐसी हजारों योजनाएं और अभियान मिल कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे | इससे पहले हम सबको मिलकर बेटियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे, कोई भी उनके मान सम्मान को ठेस ना पहुंचाने पाए। हर सड़क, हर राह को उनके लिए भी महफूज़ करना होगा, तब जाकर कोई अभियान कारगर साबित हो सकता है, जब तक बेटियों की सुरक्षा का अभाव रहेगा, तब तक ये अभियान केवल लिखित रूप से ही अभियान रहेंगे |
मैं अंततः आपसे यही निवेदन करता हूं कि हम सबको मिलकर प्रयास करने चाहिए, अगर हम मानते हैं कि 21वीं सदी भारत की है तो यहां चीखें नहीं किलकारियां गूंजनी चाहिए, शायद हम सब भूल रहे हैं, कि इसी भारत भूमि से ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण जगत को यह संदेश दिया था कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:” जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं | यह संदेश हम जगत के लिए पुनः लेकर जाएं इसके लिए जरूरी है, कि हम सब पहले खुद नारी का सम्मान करें | इतना कुछ पढ़ने के बाद अवश्य ही आप सबके अंदर अच्छे विचारों का प्रभाव बढ़ गया होगा, मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि आप सब इन अच्छे विचारों के प्रभाव को बनाए रखें और जन-जन को चेतन करने का कष्ट करें |
परिचय
गौरव वशिष्ठ (B.Tech DT )
लाला लाजपत राय विश्वविधालय, हिसार
1 Comments
God bless u bhanje